आज मन उदास है।

भावनाएं ज्यादा है शब्द कम है|

घुप्त अंधेरे में जलती मोमबत्ती जीवन का अकेला संकेत है|

व्याकरण ने साथ छोड़ दिया है|

रसों का भी ज्ञान नहीं है|

उष्णता में शीतलता आ गई है|

दशा उलझी और दिशा अज्ञात है|

मगर मन स्याही को जमने नहीं दे रहा|

मस्तिष्क रुका है मगर हाथों में अभी रफ्तार है|

शब्द फीके हैं पर भावनाएं प्रगाढ़ है|

ना कोई अंत है और न ही शुरुआत है|

शायद यह कविता है क्योंकि मन को अब भी इसकी तलाश है|

और यह सब इस कच्चे कवि के जीवन भर की कमाई है|